कांवड यात्रा 2025: तिथि और महत्व
जगत्प्रसिद्ध कांवड यात्रा इस वर्ष 11 जुलाई 2025 से शुरू होकर 23 जुलाई 2025 तक चलेगी। यह यात्रा हिंदू धर्म के श्रावण मास में आयोजित की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि यह महीना भगवान शिव को विशेष प्रिय है। लाखों श्रद्धालु इस दौरान गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और शिवलिंगों पर जलाभिषेक करते हैं।
कांवड यात्रा का इतिहास और मान्यताएं
कांवड क्या है?
कांवड या कावड़ बांस की एक डंडी होती है, जिसके दोनों सिरों पर समान माप के पानी के घड़े बांधे जाते हैं। भक्त इसे कंधे पर उठाकर पवित्र नदियों से जल लाते हैं।
यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
दो प्रमुख मान्यताएं प्रचलित हैं:
1. भगवान परशुराम ने पहली बार गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर पुरा महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया था।
2. समुद्र मंथन के दौरान निकले विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने शिवजी पर गंगाजल से अभिषेक किया था।
धार्मिक ग्रंथों में कांवड यात्रा का सच
क्या वेद-पुराणों में है उल्लेख?
आश्चर्यजनक रूप से, किसी भी प्रामाणिक हिंदू धर्मग्रंथ में कांवड यात्रा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। यह एक लोकपरंपरा मात्र है जो समय के साथ विकसित हुई।
श्रीमद्भगवद्गीता क्या कहती है?
गीता के अध्याय 7 के श्लोक 12-15 में स्पष्ट कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा करने वाले "आसुरी प्रवृत्ति" के होते हैं। अध्याय 16 के श्लोक 23 में कहा गया है कि जो कर्म शास्त्रों के अनुसार नहीं होते, वे व्यर्थ हैं।
कांवड यात्रा के विवाद और सच्चाई
1. सामाजिक समस्याएं:
- यूपी पुलिस ने कांवड मार्ग पर दुकानों पर मालिकों के नाम लगाने के आदेश दिए हैं
- साम्प्रदायिक तनाव की आशंका
- नशाखोरी और अनुशासनहीनता की घटनाएं
2. आध्यात्मिक सत्य:
देवी भागवत पुराण (स्कंध 3, अध्याय 5) के अनुसार भगवान शिव स्वयं स्वीकार करते हैं कि वे भी जन्म-मरण के चक्र में बंधे हैं और देवी दुर्गा के अधीन हैं।
परमेश्वर की वास्तविक पहचान क्या है?
धार्मिक ग्रंथों के गहन अध्ययन से पता चलता है:
1. देवी भागवत पुराण (स्कंध 7, अध्याय 36) में दुर्गा स्वयं कहती हैं कि उनकी पूजा छोड़कर परम ब्रह्म की शरण लेनी चाहिए।
2. श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 8, श्लोक 3,8-10) में "परम अक्षर ब्रह्म" यानी कबीर साहेब का उल्लेख है।
3. ऋग्वेद (मंडल 9, सूक्त 96) और यजुर्वेद (अध्याय 29) में भी कबीर देव का वर्णन मिलता है।
सच्चे मोक्ष का मार्ग क्या है?
संत गरीबदास जी कहते हैं:
> "तीनों देवता काल है, ब्रह्मा विष्णु और महेश | भूले चुके समझियो, सब कहूं आदेश ||"
गीता के अध्याय 4 श्लोक 34 के अनुसार सच्चे तत्वदर्शी संत की शरण में जाना ही एकमात्र मार्ग है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं जो शास्त्रानुकूल भक्ति बताते हैं।
कांवड यात्रा एक लोकपरंपरा है
कांवड यात्रा एक लोकपरंपरा है जिसका धार्मिक ग्रंथों में कोई आधार नहीं। यदि आप सच्चे आध्यात्मिक लाभ चाहते हैं, तो शास्त्रों में वर्णित सच्चे परमेश्वर कबीर साहेब की भक्ति करें और किसी तत्वदर्शी संत की शरण लें। केवल यही मार्ग मोक्ष और सच्चे आनंद की प्राप्ति करा सकता है।