शारदीय नवरात्रि 2024 कलश स्थापना मुहूर्त: जाने दुर्गा जी का वास्तविक मंत्र क्या है

3 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि का कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं. कलश स्थापना के लिए सुबह में शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है. सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त होगा.

नवरात्रि 2024 की प्रमुख तिथियाँ और घटस्थापना मुहूर्त

नवरात्रि प्रारंभ: 3 अक्टूबर 2024

घटस्थापना मुहूर्त: सुबह 6:23 बजे से 10:18 बजे तक

विजयादशमी: 12 अक्टूबर 2024

दुर्गाष्टमी और महानवमी: 11 अक्टूबर 2024


नवरात्रि 2024 के रंग  

3 अक्टूबर 2024, गुरुवार (पहला दिन) - पीला 
महत्व: पीला रंग पहनने से जीवन में खुशियाँ और सकारात्मकता आती है। यह रंग गर्मजोशी और खुशी का प्रतीक है, जो आपको पूरे दिन और पूरे साल शांत और खुश महसूस करने में मदद करता है। 

4 अक्टूबर 2024, शुक्रवार (दिन 2) - हरा 
महत्व: हरा रंग उर्वरता, सकारात्मक विकास, शांति और सुकून का प्रतीक है। इस दिन हरा रंग पहनना नई शुभ शुरुआत का प्रतीक है और आपके जीवन में शांति लाता है। 

5 अक्टूबर 2024, शनिवार (दिन 3) - ग्रे 
महत्व: ग्रे रंग मन और भावनाओं के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। एक मिट्टी के रंग के रूप में, यह विनम्रता और व्यावहारिक जीवन शैली का प्रतीक है। इस दिन ग्रे रंग पहनना बेहतरी के लिए बदलाव और रूपांतरण का प्रतीक है। 

6 अक्टूबर 2024, रविवार (दिन 4) - नारंगी 
महत्व: नारंगी एक जीवंत रंग है जो खुशी, रचनात्मकता और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। नारंगी पहनने से आपको समस्याओं का सामना शांत मन से करने और नकारात्मक भावनाओं से दूर रहने में मदद मिलती है। 

7 अक्टूबर 2024, सोमवार (दिन 5) - सफ़ेद 
महत्व: सफेद रंग शांति और सद्भाव का प्रतीक है। इस दिन सफेद कपड़े पहनने से सुरक्षा, खुशी और विचारों की शुद्धता की भावना आती है। 

8 अक्टूबर 2024, मंगलवार (दिन 6) - लाल 
महत्व: लाल एक शक्तिशाली रंग है जो प्यार, जुनून और बहादुरी का प्रतीक है। लाल रंग पहनने से भक्तों को पूरे साल जीवन शक्ति, निष्ठा और सुंदरता का आशीर्वाद मिलता है। 

9 अक्टूबर 2024, बुधवार (दिन 7) - रॉयल ब्लू 
महत्व: रॉयल ब्लू रंग शान और शाहीपन का प्रतीक है। रॉयल ब्लू पहनने से करिश्मा और जीवन में जो भी लक्ष्य आप पाना चाहते हैं, उसमें उत्कृष्टता प्राप्त करने का जुनून आता है। 

10 अक्टूबर 2024, गुरुवार (दिन 8) - गुलाबी 
महत्व: गुलाबी रंग स्नेह, सद्भाव और अच्छाई का प्रतिनिधित्व करता है। गुलाबी रंग पहनने से मानवता के प्रति प्रेम और आकर्षण पैदा होता है, जिससे सभी आपसे प्यार करते हैं। 

11 अक्टूबर 2024, शुक्रवार (दिन 9) - बैंगनी 
महत्व: बैंगनी रंग शांति और कुलीनता का प्रतीक है। इस दिन बैंगनी रंग पहनने से समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, जिससे दुर्गा देवी पूरी तरह प्रसन्न होती हैं। 

12 अक्टूबर 2024, शनिवार (दिन 10) - मोर हरा 
महत्व: मोर का हरा रंग व्यक्तित्व और बुद्धिमत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। इस रंग को पहनने से शांति, विशिष्टता और दूसरों के प्रति करुणा आती है, जिससे हरे और नीले दोनों के गुणों का लाभ मिलता है। 



दुर्गा जी का वास्तविक मंत्र क्या है? 

देवी दुर्गा को विभिन्न नामों जैसे गौरी, ब्राह्मी, रौद्री, वरही, वैष्णवी, शिवा, वरुनी, कावेरी, नरसिंही, वास्बी, विश्वेश्वरी, वेदगर्भा, महा विद्या, महामाया, जगदम्बिका, सनातनी देवी, आदि माया, महा शक्ति, अष्टांगी, जगतजन-नी, प्रकृति, त्रिदेवजन-नी से संबोधित किया जाता है।

साधक विभिन्न मंत्रों का जाप करके उसकी पूजा करते हैं, जो कहीं भी वेद, पुराण या गीता जी जैसे किसी भी हिंदू धार्मिक ग्रंथों में प्रमाणित नहीं होते हैं। दुर्गा चालिसा या दुर्गा सप्ताष्टि का पाठ करने से देवी दुर्गा कृपा नहीं करती है। यह पूजा का मनमाना आचरण है जो व्यर्थ है। 

तत्वदर्शी (प्रबुद्ध) संत द्वारा दी गई परम पुरुष परमेश्वर की सही भक्ति विधि ही करनी चाहिए। प्रमाणित सच्चे मंत्रों का जाप करने से भक्तों को परम शांति व सुख प्राप्त करने में सहायक होती है। तत्वदर्शी संत यानी संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करें और अपना कल्याण करवाएं।

तो दुर्गा पुराण से पांच अवधारणाएं स्पष्ट होती हैं:

ब्रह्मा जी, विष्णु जी, और शिव जन्म और मृत्यु में हैं, वे अविनाशी नहीं हैं।
देवी दुर्गा उनकी माता है।
दुर्गा प्रकृति देवी है।
ब्रह्मा रजोगुण है, विष्णु सतोगुण हैं और शिव शंकर तमोगुण हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, और शिव केवल कर्म फल ही दे सकते हैं, वे कोई बदलाव नही कर सकते हैं।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13- केवल परम पुरुष परमात्मा/सतपुरुष/सर्वशक्तिमान परमेश्वर कबीर साहेब जी (कर्म) बदल सकते हैं। वे हमारे पापों को क्षमा कर सकते हैं।

साधकों/श्रद्धालुओं की यह मिथक कि दुर्गा रचियता है, वह पापों को क्षमा कर सकती है और मोक्ष दे सकती है, सभी गलत साबित हुए। देवी दुर्गा इस ब्रह्मांड का रचियता नहीं है। वह पापों को क्षमा नहीं कर सकती और न ही वह मोक्ष प्रदान कर सकती। दुर्गा अविनाशी नहीं है। वह अपने पति ब्रह्म (काल) के साथ-साथ अपने तीन पुत्रों ब्रह्मा, विष्णु और शिव सहित जन्म और मृत्यु में हैं। क्षर पुरुष के सभी (21) इक्कीस ब्रह्मांड नाशवान हैं।

परम पुरुष परमेश्वर कविर्देव रचियता हैं जो पूरे ब्रह्मांड का धारन-पोषण करते हैं। वह अविनाशी हैं और शाश्वत स्थान अर्थात परम निवास स्थान 'सतलोक' में रहते हैं। अतः परम शांति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए पूर्ण परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए जैसा कि गीता जी में ब्रह्म द्वारा बताया गया है जिसे ब्रह्म ने वेदों में विस्तार से बताया है। वह सर्वोत्तम परमात्मा 'कवीर देव' है या उसे 'कबीर साहिब या 'अल्लाह हु अकबर' कहते हैं।


दुर्गा माँ की सन्तान कौन हैं?

देवी दुर्गा को 'मा' के रूप में संबोधित किया जाता है। उन्हें 'जगतजन-नी/त्रिदेवजन-नी' कहा जाता है। 
यहां हम समझेंगे: - त्रिदेव कौन हैं?
देवी ने स्वयं में से 'महा-सरस्वती, महा-लक्ष्मी और महा-काली को क्यों बनाया?

संदर्भ: कबीर सागर

ब्रह्म (काल) ने दुर्गा से विवाह किया और उनकी पति-पत्नी की जोड़ी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया ब्रह्मा जी- रजोगुण युक्त, विष्णु जी- सतोगुण युक्त और शिव शंकर जी- तमोगुण युक्त। वे 'त्रिदेव' कहलाते हैं और एक ब्रह्मांड में तीन लोकों यानी स्वर्ग-स्वर्गलोक, पृथ्वी-पृथ्वीलोक और पाताल-पाताल लोक में एक-एक विभाग के मंत्री के रूप में ज़िम्मेदारी रखते है। प्रकृति (दुर्गा) ने अपने तीन अन्य रूप (सावित्री, लक्ष्मी, और पार्वती) धारण किये और उनका अपने तीन पुत्रों से विवाह कर दिया। 'सावित्री के रूप में, भगवान ब्रम्हा जी को पत्नी दी गयी, भगवान विष्णु को लक्ष्मी रूप में और भगवान शंकर को पार्वती रूप में।

संदर्भ: - श्रीमद देवी भागवत महापुराण 

अथ देवीभागवतं सभाषाटीकं समाहात्म्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई; संस्कृत लेखन, हिंदी में अनुवादित 

देवी दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा- 'इस शक्ति को तुम अपनी पत्नी बनाओ। 'महासरस्वती' नाम से विख्यात यह सुंदरी अब सदा तुम्हारी पत्नी होकर रहेगी'। 

भगवती जगदम्बा ने भगवान विष्णु से कहा - 'विष्णु! मन को मुग्ध करने वाली इस 'महालक्ष्मी' को लेकर अब तुम भी पधारो। यह सदा तुम्हारे वक्षःस्थल में विराजमान रहेगी'। 

देवी ने कहा 'शंकर! मन को मुग्ध करने वाली यह 'महाकाली' गौरी- नाम से विख्यात है। तुम इसे पत्नी रूप में स्वीकार करो।

श्रीमद देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध 3, अध्याय 4, पृष्ठ संख्या 10, श्लोक 42

ब्रह्मा- अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे व्यं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या तव्मेव जननी प्रकृतिः पुराणा (42)

'हे माता, ब्रह्मा, मैं (विष्णु), तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य/अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इंद्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम्हीं अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो। 

श्रीमद देवी भागवत पुराण, पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8

यदि दयाद्रमना न सदाम्बिके कथमहं विहितश्च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसम्भवः सुविहितः किमु सत्वगुणो हरिः (8) 

भगवान शंकर बोले:- हे माता, यदि आप हमारे ऊपर सदा दयायुक्त हो तो आपने मुझे तमोगुण में किस प्रकार प्रधान किया, कमल से उतपन्न होने वाले ब्रह्मा को रजोगुण किस लिये बनाया तथा आपने विष्णु को सतगुण क्यों बनाया?" अर्थात आपने हमें जीवों/प्राणियों के जन्म और मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों संलग्न किया? 

श्रीमद देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध, अध्याय 1-3, पृष्ठ संख्या 119 -120

भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी और श्री शिव जी से कहा कि 'दुर्गा हम, तीनों की माता है। यही सर्व-जन की माता/जगतजन-नी, देवी जगदम्बिका/ प्रकृति देवी है। यह भगवती हम सभी की आदि कारण है।'

'यह वही दिव्यांगना है जिनके प्रलयर्नव में मुझे दर्शन हुए थे। उस समय मैं बालकरूप में था। वह मुझे पालने में झूला रही थी। वटवृक्ष पत्र/पत्ते पर एक सुदृढ़ शैय्या बिछी थी। उस पर लेटकर, मैं पैर के अंगूठे को अपने कमल जैसे मुख में चूस रहा था और खेल रहा था। यह देवी गाते हुए मुझे झूला रही थी। यह वही देवी है। इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्हें देखकर, मुझे बीते हुए पल याद आ गए। यह हमारी माँ है।' 

तीसरा स्कंध, अध्याय 5, पृष्ठ संख्या 123 

श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - 'तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है। मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर, हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा जन्म (आविर्भाव) और मृत्यु (तिरोभाव) हुआ करता है; अर्थात, हम तीनो देवता नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य हो। तुम सनातनी देवी/जगतजन-नी/ प्रकृति देवी हो (प्राचीन काल से विद्यमान हो)। 

भगवान शंकर बोले - 'देवी, यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उतपन्न) हुए हैं, तो उनके बाद उतपन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए, और फिर मैं, तमोगुणी लीला करने वाला शंकर, क्या तुम्हारी सन्तान नही हुआ अर्थात मुझे भी उत्तपन्न करने वाली तुम ही हो। इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्ही तीनों गुणों से उतपन्न हम, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर, नियमानुसार कार्य मे तत्पर रहते हैं।

तीसरा स्कंध, अध्याय 6 पृष्ठ संख्या 129

दुर्गा ने ब्रह्मा से कहा, अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए, विमान पर बैठकर तुम लोग शीघ्र पधारों। कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम, देवताओं के सामने आ जाऊंगी। मेरा(दुर्गा का) तथा ब्रम्ह का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए। हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नही है।

संदर्भ श्री शिव पुराण- गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार। 

पृष्ठ संख्या 100 -103- सदाशिव अर्थात काल-रूपी ब्रह्म और प्रकृति (दुर्गा) के मिलन(पति-पत्नी व्ययवहार) से सतगुण श्री विष्णु जी, रजगुण श्री ब्रह्मा जी, तथा तमगुण श्री शिव जी की उतपत्ति हुई। यह प्रकृति (दुर्गा), जिन्हें अष्टंगी कहा जाता है, को 'त्रिदेवजन-नी' तीन देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी) की माता कहते हैं।

पृष्ठ संख्या 110, अध्याय 9, रुद्र संहिता 

"इस प्रकार, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव, इन तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत माने गए हैं।"

गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी प्रमाण है। जहां गीता ज्ञानदाता यानी काल-ब्रह्म बताता है कि दुर्गा (प्रकृति देवी) मेरी पत्नी है। 'मैं उसके (दुर्गा) गर्भ में बीज स्थापना करता हूं, जिससे सभी प्राणियों की उतपत्ति होती है। मैं (ब्रह्म-काल) सभी का (इक्कीस ब्रह्मांड के जीवों/प्राणियों) पिता हूँ और प्रकृति (दुर्गा/अष्टंगी) सभी की माता कहलाती है। 

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि दुर्गा (प्रकृति) और ब्रह्म (काल-सदाशिव) तीनो देवताओं के माता और पिता हैं। राजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, और तमगुण शिव जी तीन गुण हैं। वे ब्रह्म (काल) और प्रकृति (दुर्गा) से उतपन्न हुए हैं और तीनों नाशवान हैं। वे मृत्युंजय (अजर-अमर/अविनाशी) या महादेव नहीं हैं। वे पूर्ण शक्तियुक्त नहीं हैं। 


FAQ 


1.अक्टूबर में नवरात्रि कब है?
शारदीय नवरात्रि अश्विन माह के शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है जो कि पंचांग के अनुसार 3 अक्‍टूबर 2024, गुरुवार को है. नवरात्रि नवमी तिथि तक चलेगी. नवरात्रि की नवमी तिथि 11 अक्‍टूबर 2024 को है.

2.नवरात्रि दशहरा कब है 2024 में?
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 3 अक्टूबर की सुबह 12 बजकर 19 मिनट से होगा, और इसका समापन अगले दिन 4 अक्टूबर की सुबह 2 बजकर 58 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024, दिन गुरुवार से आरंभ होंगी और इस पर्व का समापन 12 अक्टूबर 2024, दिन शनिवार को होगा.

3.शारदीय नवरात्रि 2024 कलश स्थापना मुहूर्त
3 अक्टूबर से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रि का कलश स्थापना करने के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं. कलश स्थापना के लिए सुबह में शुभ मुहूर्त 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 7 बजकर 22 मिनट तक है. सुबह में घट स्थापना के लिए आपको 1 घंटा 6 मिनट का समय प्राप्त होगा.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.